________________
२३८
श्रो सेठिया जैन ग्रन्थमाला उस समय त्रुटितांग, दीप और ज्योति नाम के कल्पवृक्ष नहीं थे।
(ठाणांग सूत्र ५५६) (समवायांग १४७) (जैनतत्वादर्श भाग ? गृ० ३६२) ५०९- वर्तमान कुलकरों की भार्याओं के नाम • वर्तमान अवसर्पिणी के सात कुलकरों की भार्याओं के नाम इस प्रकार हैं- (१) चन्द्रयशा, (२) चन्द्रकान्ता, (३) सुरूपा, (४) प्रतिरूपा, (५) चक्षुष्कान्ता, (६)श्रीकान्ता और (७)मरुदेवी । इन में मरुदेवी भगवान ऋषभदेव की माता थीं। और उसी भव में सिद्ध हुई हैं।
- (ठाणांग ५१६) (समवायांग १५७) ५१०-- दण्डनीति के सात प्रकार
अपराधी को दुबारा अपराध से रोकने के लिए कुछ कहना या कष्ट देना दण्डनीति है । इसके सात प्रकार हैंहक्कारे- 'हा' ! तुमने यह क्या किया ? इस प्रकार कहना। मकारे- 'फिर ऐसा मत करना' इस तरह निषेध करना। धिक्कारे- किए हुए अपराध के लिए उसे फटकारना । परिभासे- क्रोध से अपराधी को 'मत जाओ' इस प्रकार कहना। मंडलबंधे- नियमित क्षेत्र से बाहर जाने के लिए रोक देना । चारत्ते-कैद में डाल देना। छविच्छेदे- हाथ पैर नाक वगैरह काट डालना ।
इनमें से प्रथम विमलवाहन नामक कुलकर के समय 'हा' नाम की दण्डनीति थी। अपराधी को 'हा' तुमने यह क्या किया ?' इतना कहना ही पर्याप्त था। इतना कहने के बाद अपराधी भविष्य के लिए अपराध करना छोड़ देता था।दूसरे कुलकर चक्षुष्मान के समय भी यही एक दण्डनीति थी। तीसरे और चौथे कुलकर के समय थोड़े अपराधों के लिए 'हा' और बड़े अपराधों के लिए 'मकार' का दण्ड था । अपराधी को कह दिया