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भी जैन सिद्धान्त बोल संग्रह
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इस तरह तत्त्वों का अभ्यास करने से बोधि, कल्याण अर्थात तत्त्वज्ञान हो जाता है और सब प्रकार के श्रेय (उत्तम गुणों) की प्राप्ति होती है।
(अभिधानराजेन्द्र कोष ७वां भाग 'साक्ग' शब्द) ५०८- वर्तमान अवसर्पिणी के सात कुलकर
अपने अपने समय के मनुष्यों के लिए जो व्यक्ति मर्यादा बाँधते हैं, उन्हें कुलकर कहते हैं। ये ही सात कुलकर सात मनु भी कहलाते हैं। वर्तमान अवसर्पिणी के तीसरे आरे के अन्त में सात कुलकर हुए हैं। कहा जाता है, उस समय १० प्रकार के कल्पवृक्ष कालदोष के कारण कम हो गए। यह देख कर युगलिए अपने अपने वृक्षों पर ममत्व करने लगे। यदि कोई युगलिया दूसरे के कल्पवृक्ष से फल ले लेता तो झगडाखड़ा हो जाता। इस तरह कई जगह झगड़े खड़े होने पर युगलियों ने सोचा कोई पुरुष ऐसा होना चाहिए जो सब के कल्पवृक्षों की मर्यादा बाँध दे। वे किसी ऐसे व्यक्ति को खोज ही रहे थे कि उनमें से एक युगल स्त्री पुरुष को वन के सफेद हाथी ने अपने आप सँड से उठा कर अपने ऊपर बैठा लिया। दूसरे युगलियों ने समझा यही व्यक्ति हम लोगों में श्रेष्ठ है और न्याय करने लायक है। सबने उसको अपना राजा माना तथा उसके द्वारा बाँधी हुई मर्यादा का पालन करने लगे। ऐसी कथा प्रचलित है।
पहले कुलकर का नाम विमलवाहन है। बाकी के छः इसी कुलकर के वंश में क्रम से हुए । सातों के नाम इस प्रकार हैं
(१) विमलवाहन, (२) चक्षुष्मान् , (३) यशस्वान , (४) अभिचन्द्र, (५) प्रश्रेणी, (६) मरुदेव और (७) नाभि ।
सातवें कुलकर नाभि के पुत्र भगवान् ऋषभदेव हुए। विमलवाहन कुलकर के समय सात ही प्रकार के कल्पवृक्ष थे।