________________
२३६
भी सेठिया जैन ग्रन्थमाला
और उन में भी केवलज्ञान सब से अधिक दुर्लभ है । कैवल्य की प्राप्ति हो जाने पर अनन्त सुख रूप मोक्ष की प्राप्ति होती है । जन्म, जरा और मृत्यु आदि के दुःखों से भरे हुए संसार में थोड़ा सा भी मुख नहीं है । इसलिए मोक्ष के लिए ही प्रयत्न करना चाहिए। जन्म वगैरह के दुःखों से रहित अव्याबाध सुख को प्राप्त करने की बहुत सी सामग्री तो मुझे पूर्वकृत शुभ कार्यों से प्राप्त होगई है । जो नहीं प्राप्त हुई है उसी के लिए मुझे प्रयत्न करना चाहिए। जिस संसार को बुरा समझ कर बुद्धिमान् छोड़ देते हैं, उस में कभी लिप्त नहीं होना चाहिए। इस प्रकार सोचने को चिन्तन कहते हैं। इस के सात फल हैंवेरग्गं कम्मक्खय विसुद्धनाणं च चरणपरिणामो। थिरया आउय बोही, इय चिंताए गुणा हुंति ॥ (१) वेरग्गं- वैराग्य । (२) कम्मक्खय- कर्मों का नाश । (३) विसुद्धनाणं-विशुद्ध ज्ञान । (४) चरणपरिणामो- चारित्र की वृद्धि । (५) थिरया-धर्म में स्थिरता । (६) आउय-शुभ आयु का बन्ध । (७) बोही- बोधि अर्थात् तत्त्व ज्ञान की प्राप्ति । ___ऊपर लिखे अनुसार चिन्तन करने से संसार से विरक्ति हो जाती है । तत्त्वचिन्तन रूप तप से कर्मों का क्षय होता है। ज्ञान का घात करने वाले कर्म दूर होने से विशुद्ध ज्ञान होता है। मोहनीय कर्म हलका पड़ने से चारित्र गुण की वृद्धि होती है। संसार को तुच्छ तथा पाप को संसार का कारण समझने से धर्म में स्थिरता होती है। इस तरह का चिन्तन करते समय अगर आयुष्य बंध जाय तो शुभ मति का बन्ध होता है।