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मो जैन सिद्धान्त बोल संग्रह
२३५ दूसरी बार हुँ, अर्थात् तहत्तिकार करना चाहिए । तीसरी बार बाढंकार करना चाहिए, अर्थात् यह कहना चाहिए कि आपने जो कुछ कहा वही सत्य है । चौथी बार सूत्र का पूर्वापर अभिप्राय समझ कर कोई संदेह हो तो पृच्छा करनी चाहिए । यह बात कैसे है ? मेरी समझ में नहीं आई, इस प्रकार नम्रता से पूछना चाहिए । पांचवी दफे उस बात की प्रमाण से पर्यालोचना करनी चाहिए अर्थात् युक्ति से उस बात की सचाई ढूंढनी चाहिए। छही दफे उत्तरोत्तर प्रमाण प्राप्त करके उस विषय की पूरी बातें जान लेनी चाहिए । सातवीं बार ऐसा दृढज्ञान हृदय में जमा लेना चाहिए जिसे गुरु की तरह अच्छी तरह दूसरे से कहा जा सके, शिष्य को इस विधि से मूत्र का श्रवण करना चाहिए।
(विशेषावश्यक भाष्य गाथा १६५) ५०७-चिन्तन के सात फल
श्रावक को प्रातःकाल उठकर वीतराग भगवान् का स्मरण करके नीचे लिखी बातें सोचनी चाहिएँ। __ संसार के प्राणियों में द्वीन्द्रियादि त्रस जीव उत्कृष्ट हैं । उन में भी पञ्चेन्द्रिय सर्वश्रेष्ठ हैं । पंचेन्द्रियों में मनुष्य तथा मनुष्यों में आर्यक्षेत्र प्रधान है । आर्यक्षेत्र में भी उत्तम कुल तथा उत्तम जाति दुष्पाप्य हैं। ऐसे कुल तथा जाति में जन्म प्राप्त करके भी शरीर का पूणोंग होना, उसमें भी धर्म करने की सामर्थ्य होना, सामर्थ्य होने पर भी धर्म के प्रति उत्साह होना कठिन है । उत्साह होने पर भी तत्त्वों को जानना मुश्किल है । जान कर भी सम्यक्त्व अर्थात् श्रद्धा होना कठिन है।श्रद्धा होने पर भी शील की प्राप्ति अर्थात् सुशील अच्छे स्वभाव और चारित्र वाला होना दुर्लभ है । शील प्राप्ति होने पर भी दायिकभाव