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भी सेठिया जैन ग्रन्थमाला
(३) कज्जहेउं- उनके द्वारा किए हुए ज्ञान दानादि कार्य के
लिए उन्हें विशेष मानना। (४) कयपडिकत्तिया- दूसरे द्वारा अपने ऊपर किए हुए उपकार का बदला देना अथवा भोजन आदि के द्वारा गुरु की सुश्रूषा करने पर वे प्रसन्न होंगे और उसके बदले में वे मुझे ज्ञान सिखायेंगे ऐसा समझ कर उनकी विनय भक्ति करना । (५) अत्तगवेसणया- अार्ग(दुखी प्राणियों) की रक्षा के लिए
उनकी गवेषणा करना। (६) देसकालएणया- अवसर देख कर चलना। (७) सव्यत्येसु अप्पडिलोमया- सब कार्यों में अनुकूल रहना।
(भगवती शतक २५ उद्देशा ७)(हाणांग सूत्र ५८५) (उववाई सूत्र २०) व
(धर्मसंग्रह अधिकार २ व्रतातिचार प्रकरण) ५०६ सूत्र सुनने के सात बोल - जो थोड़े अक्षरों वाला हो, सन्देह रहित हो, सारगर्भित हो, विस्तृत अर्थवाला हो, गम्भीर तथा निर्दोष हो उसे सूत्र कहते हैं। सूत्र को सुनने तथा जानने की विधि के सात अंग हैं(१) मूर्य- मूक रहना (मौन रखना) . (२) हुंकार- हुंकारा देना (जी, हाँ, ऐसा कहना) (३) बाढंकारं- आपने जो कुछ कहा है, ठीक है ऐसा कहना (४) पडिपुच्छ- प्रतिपृच्छा करना । (५) वीमंसा-मीमांसा अर्थात् युक्ति से विचार करना। (६) पसंगपारायणं- पूर्वापर प्रसंग समझकर बात को
पूरी तरह समझना।. (७) परिनिह- दृढतापूर्वक बात को धारण करना।
पहिले पहल सुनते समय शरीर को स्थिर रखकर तथा मौन रह कर एकाग्र चित्त से सूत्र का श्रवण करना चाहिए।