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श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला
आशातना न करना, भक्तिबहुमान करना तथा गुणों का कीर्तन करना। धर्म संग्रह में भक्ति, बहुमान और वर्णवाद ये तीन बातें हैं । हाथ जोड़ना वगैरह बाह्य आचारों को भक्ति कहते हैं। हृदय में श्रद्धा और प्रीति रखना बहुमान है । गुणों को ग्रहण करना वर्णवाद है। (३) चारित्रविनय-सामायिक आदि चारित्रों पर श्रद्धा करना काय से उनका पालन करना तथा भव्यप्राणियों के सामने उनकी प्ररूपणा करना चारित्रविनय है । सामायिक चारित्र. विनय, छेदोपस्थापनिक चारित्रविनय, परिहारविशुद्धि चारित्रविनय, सूक्ष्मसंपराय चारित्रविनय और यथाव्यातचारित्रविनय के भेद से इसके पांच भेद हैं। (४) मनविनय- प्राचार्यादि की मन से विनय करना, मन की अशुभप्रवृत्ति को रोकना तथा उसे शुभ प्रवृत्ति में लगाना मनविनय है। इस के दो भेद हैं प्रशस्त मनविनय तथा अप्रशस्त मनविनय । इन में भी प्रत्येक के सात सात भेद हैं। (५) वचनविनय-आचार्यादि की वचन से विनय करना, वचन की अशुभ प्रवृत्ति को रोकना तथा उसे शुभ व्यापार में लगाना वचनविनय है। इसके भी मन की तरह दो भेद हैं । फिर प्रत्येक के सात सात भेद हैं वे आगे लिखे जायेंगे। (६) कायविनय-प्राचार्यादि की काय से विनय करना, काया की अशुभ प्रवृत्ति को रोकना तथा उसे शुभ व्यापार में प्रवृत्त करना कायविनय है । इसके भी मनविनय की तरह भेद हैं । (७) उपचारविनय-दूसरे को सुख प्राप्त हो, इस तरह की बाह्य क्रियाएं करना उपचारविनय है । इस के भी सात भेद हैं। (उववाई सूत्र २०) (भगवती शतक २५ उद्देशा ७) (ठाणांग सूत्र ५८५)
(धर्मसंग्रह अध्ययन ३ तातिचार प्रकरण)