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श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला
वैभाषिक, सौत्रान्तिक, योगाचार, माध्यमिक और जैन । बीच की चारों विचारधाराएँ बौद्धों में से निकली हैं। तुलनात्मक दृष्टि से समझाने के लिए इनके विषय में भी कुछ बातें नीचे लिखी जाती हैं।
प्रवर्तक चार्वाक दर्शन के प्रवर्तक बृहस्पति माने जाते हैं, किन्तु इनका कोई ग्रन्थ न मिलने से यह निश्चय पूर्वक नहीं कहा जा सकता कि बृहस्पति नाम के कोई प्राचार्य वास्तव में हुए थे या नहीं। __बौद्धों के वैभाषिक और सौत्रान्तिक मत तीन पिटकों में पाए जाते हैं। इसलिए इनका प्रारन्म उन्हीं से माना जाता है। बाद में बहुत से प्राचार्यों ने इन मतों पर ग्रन्थ लिखे हैं। योगाचार मत के प्रवर्तक आचार्य असङ्ग और वसुबन्धु माने जाते हैं। माध्यमिक मत के प्रधान आचार्य नागार्जन थे । वर्तमान जैन दर्शन के प्रवर्तक भगवान महावीर स्वामी हैं ।
प्रधान प्रतिपाद्य चार्वाक दर्शन भौतिकवादी. है । स्वर्ग नरक की सब बातों को ढोंग मानता है। वैभाषिकों का सर्वास्तिवाद है अर्थात् दुनियाँ की सभी वस्तुएँ वास्तव में सत् किन्तु क्षणिक हैं और प्रत्यक्ष तथा अनुमान से जानी जाती हैं। सौत्रान्तिक मत में सब वस्तुएँ सत् होने पर भी प्रत्यक्ष का विषय नहीं हैं । वे सब अनुमान से जानी जाती हैं । योगाचार ज्ञानाद्वैतवादी है अर्थात् संसार की सभी वस्तुएँ झूठी हैं, केवल ज्ञान ही सच्चा है । वह भी क्षणिक है । माध्यमिक शून्यवादी हैं । उनके मत में संसार न भावस्वरूप है, न अभावस्वरूप है, न भावाभाव