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श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह
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अर्थात् दुःख को छोड़ने की इच्छा वाला व्यक्ति मोक्षमार्ग का अधिकारी है। मीमांसा दर्शन में कर्मफलासक्त तथा वेदान्तदर्शन में साधनचतुष्टयसम्पन्न व्यक्ति मोक्षमार्ग का अधिकारी है।
इस लोक तथा परलोक के भोगों से विरक्ति होना, शान्त, दान्त, उपरत तथा समाधि से युक्त होना, वैराग्य तथा मोक्ष की इच्छा होना, ये चार साधन चतुष्टय हैं ।
वाद
संसार में दो तरह के पदार्थ हैं- (१) नित्य जो कभी उत्पन्न नहीं होते और न कभी नष्ट होते हैं । (२) अनित्य, जो उत्पन्न
भी होते हैं और नष्ट भी होते रहते हैं। ___ अनित्य कार्यों की उत्पत्ति के प्रत्येक मत की प्रक्रियाएँ भिन्न भिन्न हैं। सांख्य और योगदर्शन परिणामवादी हैं । इस मत के अनुसार कार्य उत्पन्न होने से पहले भी कारण रूप में विद्यमान रहता है । इसी लिए इसे सत्कार्यवाद भी कहा जाता है । अर्थात् संसार में कोई वस्तु नई उत्पन्न नहीं होती। घट, पट आदि सभी वस्तुएँ पहले से विद्यमान हैं। कारण सामग्री के एकत्र होने पर अभिव्यक्त अर्थात् प्रकट हो जाती है। इसी अभिव्यक्ति को उत्पत्ति कहा जाता है । परिणाम का अर्थ है बदलना। अर्थात् कारण ही कार्य रूप में अभिव्यक्त होता है । सांसारिक सभी पदार्थों का कारण प्रकृति है । प्रकृति ही महान् आदि तत्त्वों के रूप में परिणत होती हुई घट पट आदि रूप में अविभक्त होती है । इसी का नाम परिणामवाद है।
वैशेषिक, नैयायिक और मीमांसक आरम्भवादी हैं । इनके मत में घटादि कार्य परमाणुओं से प्रारम्भ होते हैं । उत्पत्ति से