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श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला
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. बन्ध सांख्य मत में त्रिविध दुःख का सम्बन्ध ही बन्ध है। योग दर्शन में प्रकृति और पुरुष के संयोग से पैदा होने वाले अविद्या
आदि पाँच क्लेश ।नैयायिक और वैशेषिक मत में इक्कीस प्रकार के दुःख का सम्बन्ध ही बन्ध है । मीमांसा दर्शन में नरकादि दुःखों का सम्बन्ध तथा वेदान्त दर्शन में शरीरादि के साथ जीव का अभेद ज्ञान बन्ध है।
मोक्ष सांख्य, योग, वैशेषिक और न्यायदर्शन में दुःख का ध्वंस अर्थात् नाश हो जाना ही मोक्ष है। मीमांसा दर्शन मोक्ष नहीं मानता । यज्ञादि के द्वारा होने वाला स्वर्ग अर्थात् सुख उस मत में मोक्ष है। वेदान्त दर्शन के अनुसार जीवात्मा और परमात्मा के एक्य का साक्षात्कार हो जाना मोक्ष है।
मोक्ष साधन सांख्य और योगदर्शन में प्रकृति पुरुष का विवेक तथा वैशेषिक और नैयायिक मत में तत्त्वज्ञान ही मोक्ष का कारण है। पीमांसा मत में स्वर्ग रूप मोक्ष का साधन वेदविहित कर्म का अनुष्ठान और निषिद्ध कर्मों का त्याग है । वेदान्तदर्शन में अविद्या और उसके कार्य का निवृत्त हो जाना मोक्ष है।
अधिकारी सांख्यदर्शन में संसार से विरक्त पुरुष को मोक्ष मार्ग का अधिकारी माना है। योगदर्शन में मोक्ष का अधिकारी विशिष्ठ चित्त वाला है। न्याय और वैशेषिक दर्शन में दुःखजिज्ञासु