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श्री सेठिया जैन ग्रन्थ माला
या एक ही व्यक्ति के भिन्न भिन्न विचार होते हैं। अगर प्रत्येक व्यक्ति की दृष्टि से देखा जाय तो ये विचार अपरिमित हैं। उन सब का विचार प्रत्येक को लेकर करना असम्भव है। अपने प्रयोजन के अनुसार अतिविस्तार और अतिसंक्षेप दोनों को छोड़ कर किसी विषय का मध्यमदृष्टि से प्रतिपादन करना ही नय है । प्रमाणनयतत्त्वालोकालङ्कार में आया है:__ नीयते येन श्रुताख्यप्रमाणविषयीकृतस्यार्थस्यांशस्तदितरांशौदासीन्यतः स प्रतिपत्तुरभिप्रायविशेषो नयः।
अर्थात् जिसके द्वारा श्रुत प्रमाण के द्वारा विषय किए पदार्थ का एक अंश सोचा जाय ऐसे वक्ता के अभिप्राय विशेष को नय कहते हैं।
नयों के निरूपण का अर्थ है विचारों का वर्गीकरण । नयवाद अर्थात् विचारों की मीमांसा । इस वाद में विचारों के कारण, परिणाम या विषयों की पर्यालोचना मात्र नहीं है। वास्तव में परस्पर विरुद्ध दीखने वाले, किन्तु यथार्थ में अविरोधी विचारों के मूल कारणों की खोज करना ही इसका मूल उद्देश्य है। इसलिए नयवाद की संक्षिप्त परिभाषा है , परस्पर विरुद्ध दीखने वाले विचारों के मूल कारणों की खोज पूर्वक उन सब में समन्वय करने वाला शास्त्र। दृष्टान्त के तौर पर आत्मा के विषय में परस्पर विरोधी मन्तव्य मिलते हैं । किसी का कहना है कि 'आत्मा एक है। किसी का कहना है आत्मा अनेक हैं। एकत्व और अनेकत्व परस्पर विरोधी हैं। ऐसी दशा में यह वास्तविक है या नहीं और अगर वास्तविक नहीं है तो उसकी संगति कैसे हो सकती है ? इस बात की खोज नयवाद ने की और कहा कि व्यक्ति की दृष्टि से आत्मा अनेक