________________
१६२
श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला
का चौथा और अवसर्पिणी का तीसरा आरा समाप्त होने से कुछ पहले खाद्य सामग्री कम हो जाती है और उनमें झगड़ा खड़ा हो जाता है । धीरे धीरे लोग इस बात को समझने लगते हैं कि अब वृक्षों से प्राप्त फलों पर निर्वाह नहीं होगा। किसी ऐसे महा पुरुष की आवश्यकता है जो आजीविका के कुछ नए साधन बताए तथा समाज को व्यवस्थित करे। ____ उसी समय प्रथम तीर्थङ्कर का जन्म होता है । वे आग जलाना
खेती करना, भोजन बनाना, बर्तन बनाना आदि गृहस्थोपयोगी बातों को बताते हैं। समाज के नियम बांध कर जनता को परस्पर सहयोग से रहना सिखाते हैं। अन्तिम अवस्था में वे स्वयं दीक्षा लेकर कठोर तपस्या द्वारा कैवल्य प्राप्त करते हैं
और जनता को धर्म का उपदेश देते हैं । उनके बाद दो आरों में क्रमशः तेईस तीर्थङ्कर होते हैं। शेष दो आरों में पाप बहुत अधिक बढ़ जाता है। वे दोनों इक्कीस इक्कीस हजार वर्ष के होते हैं । उत्सर्पिणी के पहले आरे सरीखा अवसर्पिणी का छठा आरा होता है । इसी प्रकार व्यत्यय (उल्टे) क्रम से सभी आरों को जान लेना चाहिए।
वर्तमान समय अवसर्पिणी काल है। इसमें तीसरे आरे के तीसरे भाग की समाप्ति में पल्योपम का आठवाँ भाग शेष रहने पर कल्पवृक्षों की शक्ति कालदोष से न्यून हो गई । खाद्य सामग्री कम पड़ने लगी। युगलियों में देष और कषाय की मात्रा बढ़ी और आपस में विवाद होने लगा। उन विवादों को निपटाने के लिए युगलियों ने सुमति नाम के एक बुद्धिमान तथा प्रतापी पुरुष को अपना स्वामी चुन लिया। इस प्रकार चुने जाने के बाद उनका नाम कुलकर पड़ा । सुमति के बाद