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श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह
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क्रमशः चौदह कुलकर हुए । पहले पाँच कुलकरों के समय 'हा' दण्ड था । अर्थात् अपराधी को 'हा' कह देना ही पर्याप्त था । छठे से दसवें कुलकर तक मकार अर्थात् 'मत करो' कह देना दण्ड था। ग्यारहवें से पन्द्रहवें कुलकर तक धिक्कार दण्ड था । इनसे यह जाना जा सकता है कि जनता किस प्रकार अधिकाधिक कुटिल परिणामी होती गई और उसके लिए उत्तरोत्तर कठोर दण्ड की व्यवस्था करनी पड़ी। __पन्द्रहवें कुलकर भगवान् ऋषभदेव हुए। वे चौदहवें कुलकर नाभि के पुत्र थे। माता का नाम था मरुदेवी। जम्बूद्वीप पएणत्ति में लिखा है कि भगवान् ऋषभदेव इस अवसर्पिणी के प्रथम राजा, प्रथम जिन, प्रथम केवली, प्रथम तीर्थङ्कर और प्रथम धर्म चक्रवर्ती थे । इनके समय युगल धर्म विच्छिन्न हो गया।
आजीविका के लिए नए नए साधनों का आविष्कार हुआ। भगवान् ऋषभदेव ने लोगों की रुचि के अनुसार भिन्न भिन्न कर्मों की व्यवस्था की । आवश्यकतानुसार अधिक अन्न पैदा करने के लिए खेती का आविष्कार किया । जङ्गली पशु तथा हिंसक प्राणियों से खेती तथा अपनी रक्षा के लिए असि अर्थात् शस्त्र विद्या को सिखाया । जमीन जायदाद तथा राज्य कार्यों की व्यवस्था के लिए लिखापढ़ी का तरीका निकाला। भगवान् ऋषभदेव ने क्षत्रिय वैश्य और शूद्र तीन वर्षों की कर्मानुसार व्यवस्था की । ब्राह्मण वर्ण उनके पुत्र भरत चक्रवर्ती ने निकाला।
अपने जीवन के अन्तिम समय में भगवान् ऋषभदेव ने गृहस्थाश्रम छोड़कर मुनिव्रत ले लिया । कठोर तपस्या के बाद कैवल्य प्राप्त किया। माघ कृष्णा एकादशी को यह संसार