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श्री सेठिया जैन प्रन्थमाला
अरिहन्त या जिन कहा जाता है । जिन काम, क्रोध, मद और लोभ आदि आत्मा के शत्रुओं पर पूर्ण विजय प्राप्त कर लेते हैं । संसार की सारी वस्तुओं को प्रत्यक्ष जानते तथा देखते हैं । जो जिन समय समय पर धर्म में पाई हुई शिथिलता को दूर करते हैं, धर्म संघ रूप तीर्थ की व्यवस्था करते हैं वे तीर्थंकर कहे जाते हैं। प्रत्येक संघ में साधु, साध्वी, श्रावक तथा श्राविका रूप चार तीर्थ होते हैं। __ जैन साधुओं का प्राचीन नाम निग्गंथ (निर्ग्रन्थ) है। अर्थात् जिन्हें किसी प्रकार की गांठ या बन्धन नहीं है । निग्गंथों का निर्देश बौद्ध शास्त्रों में स्थान स्थान पर आता है । मथुरा तथा कई और स्थानों से कई हजार वर्ष पुराने जैन स्तूप (स्तंभ) निकले हैं। ऋग्वेद में जैन दर्शन का जिक्र है । इन सब प्रमाणों से यह निश्चय पूर्वक कहा जा सकता है कि जैन दर्शन बौद्ध दर्शन की शाखा या कोई अर्वाचीन मत नहीं है।
वैदिक संस्कृति के प्रारम्भ में भी इसका अस्तित्व था। .... जैन संस्कृति, जैन विचारधारा और जैन परम्परा अपना
स्वतन्त्र वास्तविक अस्तित्व रखती हैं। प्रसिद्ध विद्वान् हर्मन जैकोवी ने कहा है 'सच कहा जाय तो जैन दर्शन का अपना निजी आध्यात्मिक आधार है। बौद्ध और ब्राह्मण दोनों दर्शनों से भिन्न इसका एक स्वतन्त्र स्थान है।' भारतीय प्राचीन इतिहास को समुज्वल बनाने में इसका बहुत बड़ा हाथ रहा है।
जैन दर्शन के अनुसार सत्य अनादि है और अनन्त भी। संसार दो प्रकार के द्रव्यों से बना है जीव द्रव्य और अजीव द्रव्य । सभी द्रव्य अनादि और अनन्त हैं किन्तु सांख्य-योग की तरह कूटस्थ नित्य नहीं हैं । उनमें निरन्तर परिवर्तन होता