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श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला
नए वेदान्तमत को पक्का किया और उसका प्रचार किया। रामानुज सम्प्रदाय के आज भी बहुत से अनुयायी हैं । शंकर अद्वैतवादी है, रामानुज विशिष्टाद्वैतवादी है। शंकर की तरह रामानुज भी मानते हैं कि ब्रह्म सत्य है, सर्वव्यापी है पर वह ब्रह्म को प्रेम या करुणामय भी मानते हैं। ब्रह्म में चित् भी है, अचित् भी है, दोनों ब्रह्म के प्रकार हैं। आत्माएँ ब्रह्म के भाग हैं अतएव अनश्वर हैं, सदा रहेंगी। ब्रह्म अन्तर्यामी है अर्थात् सब आत्माओं के भीतर का हाल जानता है । मोक्ष होने पर भी, ब्रह्म में मिल जाने पर भी आत्माओं का अस्तित्व रहता है। ब्रह्म के भीतर होते हुए भी उनका पृथकत्व रहता है । यह सच है कि कल्प के अन्त में ब्रह्म अपनी कारणावस्था को धारण करता है और आत्मा तथा अन्य सब पदार्थ संकुचित हो जाते हैं, अव्यक्त हो जाते हैं । पर दूसरे कल्प के प्रारम्भ में आत्माओं को अपने पुराने पाप पुण्य के अनुसार फिर शरीर धारण करना पड़ता है । यह क्रम मोत तक चलता रहता है। जगत् ब्रह्म से निकला है पर बिल्कुल मिथ्या नहीं है । इस विचार शृङ्खला में ब्रह्म सगुण हो जाता है, उसमें विशेषताएँ
आजाती हैं, अद्वैत की जगह विशिष्टाद्वैत आता है, यह ईश्वर प्रेम से भरा है । उसकी भक्ति करनी चाहिए। प्रसन्न होकर वह भक्तों को सब सुख देगा। ___ अद्वैत और विशिष्टाद्वैत के सिवाय वेदान्त में और भी कई विचार धाराएँ प्रचलित हैं । द्वैत, द्वैताद्वैत, शुद्धाद्वैत आदि की गणना भी वेदान्तदर्शन में ही की जाती है। उपनिषद्, बादरायण ब्रह्मसूत्र और भगवद्गीता को प्रमाण मान कर चलने वाले सभी दर्शन वेदान्त के अन्तर्गत हैं । इन तीनों को वेदान्त की प्रस्थान