________________
१५०
श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला
बौद्ध और जैन जो जगत्कर्ता को नहीं मानते योग को मानते हैं और कहीं कहीं तो उस पर बहुत जोर देते हैं। सांख्य से योग का घनिष्ठ सम्बन्ध है। योगसूत्र या योगसूत्रानुशासन को सांख्य प्रवचन भी कहते हैं। विज्ञानभिक्षु जिन्होंने कपिल के सांख्यसूत्र पर टीका की है, योगवार्तिक और योगसारसंग्रह के भी रचयिता हैं और दोनों तत्त्वज्ञानों के सम्बन्ध को स्पष्ट करते हैं। योग ने सांख्य की बहुत सी बातें ले ली हैं पर कुछ नई बातें जोड़ दी हैं जैसे परमेश्वर, परमेश्वर की भक्ति और चित्त की एकाग्रता । योग शास्त्र ने संयम की विस्तृत पद्धति बना दी है। इसी योग को सेश्वर सांख्य भी कहते हैं। __ दूसरे सूत्र में पतञ्जलि कहते हैं कि चित्त की वृत्तियों का निरोध योग है। यदि मन एकाग्र करके आत्मा या परमात्मा के ध्यान में लगा दिया जाय, इन्द्रियों की चंचलता रोक दी जाय तो आत्मा को समत्व और शान्ति मिलती है, सब दुःख मिट जाते हैं और आध्यात्मिक आह्लाद प्रकट होता है । मन की चञ्चलता, बीमारी, सुस्ती, संशय, लापरवाही, मिथ्यात्व आदि से उत्पन्न होती है । इन्हीं से दुःख भी उत्पन्न होता है। इन सब को दूर करने के लिए मन को तत्त्व पर स्थिर करना चाहिए। इसकी व्यौरेवार व्यवस्था पतञ्जलि के योगसूत्र में हैं। योगसूत्र के चार पाद हैं-- समाधि, साधन, विभूति और कैवल्य । समाधिपाद में योग का उद्देश्य और रूप बताया है
और दिखाया है कि समाधि कैसी होती है। समाधि के साधनों को दूसरे पाद में बताया है । समाधि से प्राप्त होने वाली अलौकिक शक्तियों तथा विभूतियों का वर्णन तीसरे पाद में है। इन भागों में योग के बहुत से अभ्यास (क्रियाएँ) भी बताए