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श्री सेठिया जैन प्रन्थमाला
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रहता है। पुनर्जन्म के सम्बन्ध में सांख्य यह भी मानता है कि स्थूल शरीर के अलावा एक लिङ्गशरीर यापातिवाहिक शरीर है जो बुद्धि, अहंकार, मन, पाँच तन्मात्राएँ और पाँच आभ्यन्तरिक इन्द्रियों का बना है, जो दिखाई नहीं पड़ता, पर उसी के कारण एक पुरुष का दूसरे से भेद किया जा सकता है। वह कर्म के अनुसार बनता है और मरने पर पुरुष के साथ दूसरे जन्म में जाता है और फल भोगता है । इस बात पर सांख्यदर्शन बार बार जोर देता है कि इस अविवेक से ही पुरुष संसार के जंजाल में फंस गया है, परिमित होगया है, दुःख उठा रहा है। विवेक होते ही यह दुःख दूर हो जाता है। कृत्रिम सीमाएँ मिट जाती हैं। पुरुष को कैवल्य मिल जाता है। कैवल्य में कोई दुःख नहीं है, कोई परतन्त्रता नहीं है, कोई सीमा नहीं है। यही मोक्ष है। ___सांख्य दर्शन में तीन प्रमाण माने गए हैं । प्रत्यक्ष, प्राप्तवचन और अनुमान । सांख्य के इन सब सिद्धान्तों पर आगामी लेखकों में बहुत सा मतभेद दृष्टिगोचर होता है । इन के अतिरिक्त सांख्यग्रन्थों में अभिबुद्धि (व्यवसाय, अभिमान, इच्छा, कर्तव्यता, क्रिया), कर्मयोनी (धृति, श्रद्धा, सुरखा, अविविदिषा, विविदिषा) वायु (प्राण, अपान, समान, उदान, व्यान) कर्मात्मा, (वैकारिक, तैजस, भूतादि, सानुमान, निरनुमान), अविद्या (तमस्, मोह, महामोह, तामिस्र, अन्धतामिस्र) तुष्टि, अतुष्टि, सिद्धि, प्रसिद्धि, मूलिकार्थ, पष्टितन्त्र, अनुग्रहसर्ग, भूतसर्ग, दक्षिणा, इत्यादि की भी विस्तृत व्याख्या की है।
सांख्य मत के साधु त्रिदंडी अथवा एक दण्डी होते हैं। उस्तरे से सिर मुंडाते हैं । इनके वस्त्र भगवे होते हैं और आसन मृग चर्म का होता है । ये ब्राह्मणों के यहाँ ही भोजन करते