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श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह
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है दृष्टान्त जो समानता या विषमता का होता है और जो विचार या तर्क की बात है । वह चार तरह का हो सकता है (१) सर्वतन्त्रसिद्धान्त जो सब शास्त्रों में माना गया है । (२) प्रतितन्त्रसिद्धान्त जो कुछ शास्त्रों में माना गया है कुछ में नहीं। (३) अधिकरणसिद्धान्त जो माने हुए सिद्धान्तों से निकलता है । (४) अभ्युपगमसिद्धान्त जो प्रसङ्गवश माना जाता है । या आगामी लेखकों के अनुसार जो सूत्र में न होते हुए भी शास्त्रकारों द्वारा माना गया है। सातवां पदार्थ अवयव वाक्य का अंश है, आठवां है तर्क, नवां है निर्णय अर्थात् तर्क के द्वारा निश्चित किया हुआ सिद्धान्त । बाकी पदार्थ तर्क शास्त्रार्थ या विचार के अङ्ग प्रत्यङ्ग या बाधाएँ हैं। ___ नैयायिक दर्शन शैव नाम से भी कहा जाता है । इस मत के साधु दण्डधारी होते हैं । लँगोट बांधते हैं, कम्बल ओढते हैं और जटा रखते हैं। ये लोग शरीर पर भस्म रमाते हैं और नीरस आहार का सेवन करते हैं। भुजा पर तुम्बा धारण किये रहते हैं । प्रायः जङ्गल में रहते हैं और कन्द मूल का आहार करते हैं । अतिथि का सत्कार करने में सदा तत्पर रहते हैं कोई साधु स्त्री का त्याग करते हैं और कोई उसे साथ में रखते हैं । स्त्री त्यागी साधु उत्तम माने जाते हैं। ये लोग पञ्चाग्नि तपते हैं । दतौन करके, हाथ पैर धोकर शिव का ध्यान करते हुए तीन बार शरीर पर राख लगाते हैं । भक्त लोग नमस्कार करते समय ॐ नमः शिवाय' कहते हैं और ये उत्तर में 'शिवाय नमः' कहते हैं । इनके मत में सृष्टि और संहार का कर्त्ता शंकर माना गया है । शंकर के १८ अवतार माने गए हैं । इनका गुरु अक्षपाद है इसलिये ये आक्षपाद भी कहलाते हैं।