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श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला
दुःखों से अत्यन्त छुटकारा होना ही इस मत में मोक्ष है । शैवी दीक्षा का महत्व बताते हुए ये लोग कहते हैं कि इस दीक्षा को बारह वर्ष सेवन करके जो छोड़ भी दे तो वह चाहे दासी दास ही क्यों न हो, मुक्ति को प्राप्त करता है । इन लोगों का कहना है कि जो शिव को वीतराग रूप से स्मरण करता है वह वीतराग भाव को प्राप्त होता है और जो सराग शिव का ध्यान करता है वह सरागभाव को प्राप्त करता है । वैशेषिक दर्शन
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प्राचीन भारत में और अब भी संस्कृत पाठशालाओं में न्यायदर्शन के साथ साथ वैशेषिक दर्शन भी पढ़ाया जाता है । वैशेषिक दर्शन के चिह्न बुद्ध और महावीर के समय में अर्थात् ई० पूर्व ६-५ सदी में मिलते हैं। पर इसकी व्यवस्था दो तीन सदी पीछे काश्यप, लूक्य, करणाद, करणभुज या करणभक्ष ने वैशेषिकसूत्र के दस अध्यायों में की है। चौथी ई० सदी के लगभग प्रशस्तपाद ने पदार्थधर्मसंग्रह में और १०-११ ई० सदी में उसके टीकाकार व्योमशेखर ने व्योमवती में, श्रीधर ने न्यायकन्दली में, उदयन ने किरणावली में और श्रीवत्स ने लीलावती में वैशेषिक का कथन किया है । कणाद ने धर्म की व्याख्या करने की प्रतिज्ञा से अपना सूत्र ग्रन्थ आरम्भ किया है । धर्म वह है जिससे पदार्थों का तत्त्वज्ञान होने से मोक्ष होता है । पदार्थ छ: हैं- द्रव्य, गुण, कर्म, सामान्य, विशेष और समवाय । इनमें संसार की सब चीजें शामिल हैं। द्रव्य नौ हैं पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, आकाश, काल, दिशा, आत्मा और मन । पृथ्वी, जल, तेज और वायु के लक्षण या गुण वैशेषिक