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________________ १३६ श्री सेठिया जैन ग्रन्थ माला वेद ईश्वर का रचा हुआ है और सर्वत्र प्रमाण है । इस तरह वाक्य दो तरह के होते हैं- वैदिक और लौकिक । पुराने नैयायिकों ने स्मृतियों को लौकिक वाक्य माना है पर आगे के कुछ लेखकों ने इनकी गणना भी वेदवाक्य में की है। वेदवाक्य तीन तरह के हैं- एक तो विधि जिसमें किसी बात के करने या न करने का विधान हो, दूसरा अर्थवाद जिसमें विधेय की प्रशंसा हो, या निषेध्य की निन्दा हो, या कर्म की विभिन्न रीतियों का निर्देश हो, या पुराकल्प अर्थात् पुराने लोगों के आचार से विधेय का समर्थन हो । तीसरा वेद वाक्य अनुवाद है जो फल इत्यादि बता कर या आवश्यक बातों का निर्देश करके विधेय की व्याख्या करता है । इस स्थान पर न्यायदर्शन में पद और वाक्य की विस्तार से विवेचना की है जैसे पद से, व्यक्ति, प्राकृति और जाति का ज्ञान होता है। शब्द और अर्थ का नित्य सम्बन्ध है , इत्यादि इत्यादि । दूसरे पदार्थ प्रमेय से उन वस्तुओं का अभिप्राय है जिनके यथार्थ ज्ञान से मोक्ष मिलता है। ये बारह हैं- (१) आत्मा (२)शरीर(३) इन्द्रिय (४) अर्थ (५) बुद्धि (६) मन (७) प्रवृत्ति (८) दोष (8) पुनर्जन्म (१०) फल (११) दुःख (१२) मोक्ष । ___ आत्मा प्रत्यक्ष नहीं है पर इसका अनुमान इस तरह होता है। इच्छा, द्वेष, प्रयत्न या व्यापार करने वाला, जानने वाला, मुख और दुःख का अनुभव करने वाला कोई अवश्य है । आत्मा अनेक तथा व्यापक हैं । संसार को रचने वाला आत्मा ईश्वर है । साधारण आत्मा और ईश्वर दोनों में संख्या, परिमाण, पृथक्त्व, संयोग, विभाग, बुद्धि, इच्छा और प्रयत्न ये आठ गुण हैं । ईश्वर में ये नित्य हैं और संसारी आत्माओं
SR No.010509
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1942
Total Pages483
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size15 MB
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