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श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह
१२५ बताया है और संन्यास का उपदेश दिया है। कठिन तपस्या से बुद्ध का चित्त व्याकुल हो उठा था। इसलिए उन्होंने या उनके उत्तराधिकारियों ने, भिक्खुओं और भिक्खुनियों को एक एक करके बहुतसी चीजें जैसे कुर्सी, चौकी, चारपाई, छोटे तकिए चटाई, बरामदे, ढके चबूतरे, कपड़े, सई तागा, मसहरी, इत्यादि प्रयोग करने की आज्ञा देदी । मज्झिमनिकाय में बुद्ध ने साफ साफ कहा है कि भिक्खुत्रों को विलास और क्लेश दोनों की अति से बचना चाहिए । प्रधान शिष्य आनन्द के कहने से बुद्ध ने स्त्रियों को संघ में लेना स्वीकार कर लिया था पर अनुचित सम्बन्ध और लोकापवाद के डर से बुद्ध ने धीरे धीरे भिक्खुओं को भिक्खुनियों से भोजन लेने से, उनको पातिमोक्रव सुनाने से, उनके अपराधों का विचार करने से, उनको हाथ जोड़ने या दण्डवत् आदि करने से रोक दिया। चुल्लवग्ग से जाहिर है कि संन्यास के प्रचार से बहुत से कुटुम्ब टूट गए और खास कर बूढ़े माता पिताओं को बड़ी वेदना हुई । मज्झिमनिकाय में संन्यासी होने वाले युवकों के माता पिता की यन्त्रणा का मर्मभेदी चित्र खींचा है। माताएं रोती हैं, चिल्लाती हैं,पछाड़ खाकर गिरती हैं, मूर्छित होती हैं पर संन्यास में मस्त युवक स्नेह के सारे स्रोतों को सुखा कर अपना हृदय विचलित न होने देते। ___ गौतमबुद्ध का स्थापित किया हुआ बौद्ध संघ आत्म शासन के सिद्धान्त पर स्थिर था। इसकी कार्यवाही में राज्य की ओर से बहुत कम हस्तक्षेप होता था। संघ में भिक्खु और मिक्खनी दोनों के लिए एक समान नियम थे। संघ में व्यक्तिगत सम्पत्ति नहीं थी। जो कुछ था संघ का था, किसी विशेष भिक्ख या भिक्खुनी का नहीं । स्वयं गौतम बुद्ध ने अपने प्रधान शिष्य