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श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला
जीते थे। प्राचीन समय में पृथ्वी जल से मिली हुई थी, एक बार ऐसी आँधी चली कि जल के साथ पृथ्वी निकल आई । पुण्य क्षीण होने पर बहुत से आभास्वर देव पृथ्वी पर पैदा हुए । उनमें से कुछ ने समुद्र का पानी पिया जिससे उनकी चमक जाती रही । उसके बाद सूरज, चाँद और तारे प्रगट हुए और समय का विभाग शुरू हुआ । भोजन के भेद से लोगों के रंग अलग अलग हो गए, जिनका रंग अच्छा था वे गर्वीले अर्थात् पापी हो गए । भोजन में बहुत से परिवर्तनों के बाद चावल का रिवाज बढ़ा । जिसके खाने से लिङ्गभेद हो गया अर्थात् कुछ लोग पुरुष हो. गए और कुछ स्त्री । प्रेम और विलास प्रारम्भ हुआ, मकान बनने लगे, लोग चावल जमा करने लगे, झगड़े शुरू हुए, सरहदें बनीं, राजा की स्थापना हुई, वर्ण श्रेणी, व्यवसाय इत्यादि के विभाग हुए।
गौतम बुद्ध ने अहिंसा सदाचार और त्याग पर बहुत जोर दिया है । उनके उपदेश से संसार छोड़ कर बहुत से लोग उनके अनुयायी हो गए और भिक्खु या भिक्षु कहलाए। कुछ दिन बाद आनन्द के कहने से बुद्ध ने स्त्रियों को भी भिक्खुनी बनाना स्वीकार कर लिया । धम्मपद में बुद्ध ने भिक्खुओं को उपदेश दिया है कि कभी किसी को बुरा न मानना चाहिए, किसीसे घणा न करनी चाहिए। घणा का अन्त प्रेम से होता है। भोगविलास में जीवन नष्ट न करना चाहिए पूरे उत्साह से आध्यात्मिक उन्नति और भलाई करनी चाहिए।मुत्तनिपात में संसार को बुरा बताया है, माता पिता, स्त्री पुत्र, धन धान्य सब की माया ममता छोड़कर जङ्गल में अकेले घूमना चाहिए। महावग्ग के पव्वग्गासुत्त में भी घर के जीवन को दुःखमय और अपवित्र