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श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह
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सत्य का उपदेश दिया है, ब्रह्मचर्य की महिमा गाई है। तपस्या पर इतना जोर नहीं दिया जितना जैन और ब्राह्मण शास्त्रों में है पर उसका तिरस्कार भी नहीं किया है। बौद्धों ने
आध्यात्मिक ध्यान की आवश्यकता स्वीकार की है और बाद के शास्त्रकारों ने योग के बहुत से उपचार और प्रकार बताए हैं।
स्मरण रखना चाहिए कि बौद्ध, जैन और अनेक ब्राह्मण दर्शन भारतवर्ष की प्राचीन आध्यात्मिक विचार धाराएं हैं। उस समय के कुछ विचारों को सब ने स्वीकार किया है । नैतिक जीवन के आदर्श सब ने एक से ही माने हैं। ये सब दर्शन या धर्म भगवान् महावीर के पश्चात् डेढ़ हजार वर्ष तक साथ साथ रहे, सब का एक दूसरे पर बराबर प्रभाव पड़ता रहा। दार्शनिक विकास और पारस्परिक प्रभाव के कारण इनमें नए नए पन्थ निकलते रहे जो मूल सिद्धान्तों का बहुतसा भाग मानते रहे और जिनका प्रभाव दूसरे पन्थों पर ही नहीं वरन् मूल धर्मों और तत्त्वज्ञानों पर भी पड़ता रहा। राजनीति की तरह धर्म और तत्त्व ज्ञान में भी हिन्दुस्तान का संगठन संघसिद्धान्त के अनुसार था । कुछ बातों में एकता थी, कुछ में भिन्नता । बहुतसी बातों में समानता थी, इसलिए एक क्षेत्र धीरे धीरे दूसरे क्षेत्रों में मिल जाता था । एक दर्शन की मान्यताएँ दूसरे दार्शनिकों से सर्वथा भिन्न न थीं। बहुत सी बातों में वे एक दूसरे से मिल जाते थे। ___ कुछ बौद्ध ग्रन्थों में संसार की उत्पत्ति बड़े विस्तार से लिखी है। तिब्बती दुल्व के पाँचवें भाग में भगवान् बुद्ध भिक्षुओं से कहते हैं कि आभास्वर देवों के पवित्र, सुन्दर, चमकदार, अपार्थिव शरीर थे। वे बहुत दिन तक आनन्द से