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भी सेठिया जैन ग्रन्थ माला
गुण उसमें हैं पर इनसे पृथक् कोई आत्मा नहीं है। इन दो विरोधी सिद्धान्तों के बीच में बहुत से दार्शनिक विचार हैं जो इधर या उधर झुकते हैं और जिनकी व्याख्या और समालोचना से संस्कृत और पाली बौद्ध साहित्य की सैकड़ों पुस्तकें भरी हैं। ; जड़ या अचेतन के विषय में पहिले के बौद्ध ग्रन्थों में बहुत कम नई बातें कही हैं । साधारण हिन्दु दार्शनिक विश्वास के अनुसार यहाँ भी पृथ्वी, तेज, वायु और जल तत्त्व माने हैं पर आकाश को कहीं कहीं तो तत्त्व माना है और कहीं कहीं नहीं। सब चीजें अनित्य अर्थात् अस्थायी हैं, आगामी बौद्ध दार्शनिकों ने इन्हें क्षणिक कहा है । पहिले के ग्रन्थों में अनित्यता या अस्थिरता की विशेष समीक्षा नहीं की है पर आगे चल कर बौद्ध दार्शनिकों ने हेतु, निदान, कारण या निमित्त इत्यादि की कल्पना करके इन परिवर्तनों को एक जंजीर से जोड़ दिया है । जड़ और चेतन दोनों के विषय में कारणवाद की व्याख्या बड़े विस्तार से की गई है।
जैनियों की तरह बौद्धों ने कर्म को जड़ पदार्थ नहीं माना है। कर्म वास्तव में आत्मा की चेतना है जिसके बाद क्रिया होती है । कर्म के अनुसार अवस्था बदल जाती है पर कर्म के कोई जड़ परमाणु नहीं हैं जो आत्मा से चिपट जाते हों। कर्म की शृङ्खला तोड़ने के लिए शील समाधि और प्रज्ञा आवश्यक हैं। जिनकी विवेचना तरह तरह से बौद्ध ग्रन्थों ने की है। : शील या सदाचार का वर्णन करते हुए बौद्धों ने जीवन का धर्म बताया है। जैन साहित्य की तरह बौद्ध साहित्य में भी सब जगह अहिंसा, संयम, इन्द्रियदमन, त्याग, दान इत्यादि पर बहुत जोर दिया है । सब हिन्दुधर्मों की तरह वहाँ भी