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श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह
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कहा है । उदानवर्ग के बद्धमुत्त में जोर दिया है कि जो सच्चाई को पहुंचना चाहता है वह बुद्ध का उपदेश सुने। बुद्ध इस सत्यता का उपदेश क्यों देते हैं ? इसलिए कि दुःख का निवारण हो और शान्ति मिले। यदि बुद्ध में श्रद्धा हो तो ज्ञान और शान्ति सब में बड़ी सहायता मिलेगी । पर अपनी बुद्धि से भी काम लेना चाहिए । बुद्ध भगवान् ने तो अपने शिष्यों को यहाँ तक कहा था कि मेरे सिद्धान्तों को मेरे कारण मत स्वीकार करो किन्तु अपने आप खूब समझ बूझकर स्वीकार करो।
यह संसार कहाँ से आया है ? किसने इसको बनाया है ? क्या यह अनादि है, या अनन्त ? इन प्रश्नों का उत्तर देने से स्वयं बुद्ध ने इन्कार किया था। क्योंकि इस छान बीन से निर्वाण में कोई सहायता नहीं मिलती । आगे चल कर बौद्धों ने यह मत स्थिर किया कि संसार का रचयिता कोई नहीं है। महायान बौद्ध शास्त्रों में यह जरूर माना है कि बुद्ध इस संसार को देखते हैं और इसकी भलाई चाहते हैं, भक्तों को शरण देते हैं, दुखियों को शान्ति देते हैं। गौतम बुद्ध ने संसार को प्रधानतः दुःखमय माना है और सांसारिक जीवन का, अनुभवों का, अस्तित्व का दर्जा बहुत नीचा रक्खा है । पर दार्शनिक दृष्टि से इन्होंने संसार के अस्तित्व से कभी इन्कार नहीं किया। यद्यपि कुछ आगामी बौद्ध ग्रन्थों से यह ध्वनि निकलती है कि जगत् मिथ्या है, भ्रम है पर सब से प्राचीन बौद्ध ग्रन्थों से इस मत का समर्थन नहीं होता। प्रारम्भ से अन्त तक बौद्ध दर्शन में इस बात पर जोर अवश्य दिया है कि जगत् प्रतिक्षण बदलता रहता है, हर चीज बदलती रहती है, कोई भी वस्तु जैसी इस क्षण में है दूसरे क्षण में वैसी न रहेगी । जो कुछ है क्षण भङ्गर