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श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला
भी नहीं है। प्रयत्न के बाद उत्पन्न होना परिणामित्व के बिना नहीं हो सकता। इसलिए परिणामित्व और प्रयत्न के पश्चात् उत्पन्न होने का कोई विरोध नहीं है। जो जिससे कम स्थानों पर रहता है वह उसका व्याप्य है और जो जिससे अधिक स्थानों पर रहता हो वह उसका व्यापक है, जैसे आम और वृक्ष । आम जहाँ होगा वृक्ष अवश्य होगा, इसलिए आम वृक्ष का व्याप्य है। वृक्ष व्यापक है क्योंकि वह आम के न रहने पर भी रह सकता है। जो वस्तुएं समनियत हैं अर्थात एक दूसरे के अभाव में नहीं रहतीं उनमें विवक्षानुसार दोनों व्यापक और दोनों व्याप्य हो सकती हैं, जैसे आत्मा और चैतन्य । आत्मा को छोड़कर चैतन्य नहीं रहता और चैतन्य को छोड़कर आत्मा नहीं रहता इसलिए दोनों समनियत हैं। (२) अविरुद्ध कार्योपलब्धि- इस पर्वत में अग्नि है, क्योंकि धूम है । यह अविरुद्ध कार्योपलब्धि है क्योंकि यहाँ धूम रूप हेतु अग्नि का कार्य है और उसका विरोधी नहीं है। (३) अविरुद्ध कारणोपलब्धि- वर्षा होगी, क्योंकि खास तरह के बादल दिखाई देते हैं । यहाँ अविरुद्ध कारणोपलब्धि है, क्योंकि 'खास तरह के बादल' रूप हेतु 'वर्षा' साध्य का कारण है और उसका विरोधी नहीं है। (४) अविरुद्ध पूर्वचरोपलब्धि- एक मुहूर्त के बाद तिष्य नक्षत्र का उदय होगा क्योंकि पुनर्वसु का उदय हो चुका है । यहाँ अविरुद्ध पूर्वचर की उपलब्धि है क्योंकि 'पुनर्वसु का उदय' रूप हेतु 'तिष्योदय' रूप साध्य का पूर्वचर है । (५) अविरुद्ध उत्तरचरोपलब्धि- एक मुहूर्त पहिले पूर्वफल्गुनी का उदय हुआ था, क्योंकि उत्तरफल्गुनी का उदय हो चुका है।