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श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला
पर सोलह पद होते हैं। प्रतर आयाम विस्तार (लम्बाई चौड़ाई) में बराबर होता है। प्रतर की स्थापना का तरीका यह हैंप्रथम पंक्ति में एक, दो, तीन, चार रखना। दूसरी पंक्ति दो से आरम्भ करना और तीसरी और चौथी क्रमशः तीन और चार से प्रारम्भ करना। इस प्रकार रखने में पहली पंक्ति पूरी होगी और शेष अधूरी रहेंगी। अधूरी पंक्तियों को यथा योग्य आगे की संख्या और फिर क्रमशः बची हुई संख्या रखकर पूरी करना चाहिये । स्थापना यह है
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(३) घन तप-प्रतर को श्रेणी से गुणा करना धन है। यहाँ सोलह को चार से गुणा करने पर आई हुई चौसठ की संख्या घन है । घन से युक्त तप घन तप है। (४) वर्ग तप- घन को घन से गुणा करना वर्ग है । यहाँ चौसठ को चौसठ से गुणा करने पर आई हुई ४०६६ की संख्या वर्ग है । वर्ग से युक्त तप वर्ग तप है। (५) वर्ग वर्ग तप- वर्ग को वर्ग से गुणा करना वर्ग वर्ग है । यहाँ ४०६६ को ४०६६ से गुणा करने पर आई हुई १६७७७२१६ की संख्या वर्ग वर्ग है । वर्ग वर्ग से युक्त तप वर्ग वर्ग तप हैं। (६) प्रकीर्ण तप-श्रेणी आदि की रचना न कर यथाशक्ति फुटकर तप करना प्रकीणे तप है । नवकारसी से लेकर यवमध्य