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श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह
अकुशल मन वचन काया के व्यापारी को रोकना तथा कुशल व्यापारों में उदीरण (प्रेरणा) करना योग प्रतिसंलीनता है।
स्त्री पशु नसक के संसर्ग से रहित एकान्त स्थान में रहना विविक्त शय्यासनता है।
ये छः प्रकार के तप मुक्ति-प्राप्ति के बाह्य अंग हैं । ये बाह्य द्रव्यादि की अपेक्षा रखते हैं, प्रायः बाह्य शरीर को ही तपाते हैं अर्थात् इनका शरीर पर अधिक असर पड़ता है। इन तपों का करने वाला भी लोक में तपस्वी रूप से प्रसिद्ध हो जाता है। अन्यतीर्थिक भी स्वाभिप्रायानुसार इनका सेवन करते हैं। इत्यादि कारणों से ये तप बाह्य तप कहे जाते हैं।
__ (उत्तराध्ययन अध्ययन ३०) (ठाणांग ६ सुत्र ५११)
(उववाई सूत्र ११) (प्रवचनसारोद्धार गाथा २७०-२७२) ४७७-इत्वरिक अनशन के छः भेद ___ अनशन के दो भेद हैं-इत्वरिक अनशन और मरण काल
अनशन । इत्वरिक अनशन में भोजन की आकांक्षा रहती है इसलिये इसे साकांक्ष अनशन भी कहते हैं। मरण काल अनशन यावज्जीव के लिये होता है। इसमें भोजन की बिलकुल आकांक्षा नहीं होती इसलिये इसे निःकांत अनशन भी कहते हैं। इत्वरिक अनशन के छः भेद हैं(१) श्रेणी तप- श्रेणी का अर्थ है क्रम या पंक्ति । उपवास बेला, तेला आदि क्रम से किया जाने वाला तप श्रेणी तप है। यह तप उपवास से लेकर छ: मास तक का होता है। (२) प्रतर तप- श्रेणी को श्रेणी से गुणा करना प्रतर है। प्रतर युक्त तप प्रतर तप है। जैसे उपवास, बेला, तेला और चोला इन चार पदों की श्रेणी है। श्रेणी को श्रेणी से गुणा करने