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श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला
नहीं सह सकता । यही परिणाम कापोत लेश्या है। (४) तेजो लेश्या- तोते को चोंच के समान रक्त वर्ण के द्रव्य तेजो लेश्या के पुद्गलों का सम्बन्ध होने पर आत्मा में ऐसा परिणाम उत्पन्न होता है कि वह अभिमान का त्याग कर मन वचन और शरीर से नम्र वृत्ति वाला हो जाता है । चपलता शठता और कौतूहल का त्याग करता है । गुरुजनों का उचित विनय करता है । पाँचों इन्द्रियों पर विजय पाता है एवं योग (स्वाध्यायादि व्यापार) तथा उपधान तप में निरत रहता है । धर्म कार्यों में रुचि रखता है एवं लिये हुए व्रत प्रत्याख्यान को दृढ़ता के साथ निभाता है । पाप से भय खाता है और मुक्ति की अभिलाषा करता है। इस प्रकार का परिणाम तेजोलेश्या है। (५) पद्म लेश्या- हल्दी के समान पीले रंग के द्रव्य पद्म लेश्या के पुद्गलों के सम्बन्ध से आत्मा में ऐसा परिणाम होता है कि वह क्रोध, मान, माया, लोभ रूप कषाय को मन्द कर देता है। उसका चित्त शान्त रहता है एवं अपने को अशुभ प्रवत्ति से रोक लेता है। योग एवं उपधान तप में लीन रहता है। वह मितभाषी सौम्य एवं जितेन्द्रिय बन जाता है। यही परिणाम पद्म लेश्या है। (६) शुक्ल लेश्या- शंख के समान श्वेत वर्ण के द्रव्य शुक्ल लेश्या के पुद्गलों का संयोग होने पर आत्मा में ऐसा परिणाम होता है कि वह आर्त रौद्र ध्यान का त्याग कर धर्म एवं शुक्ल ध्यान का अभ्यास करता है । वह प्रशान्त चित्त और आत्मा का दमन करने वाला होता है एवं पाँच समिति तीन गुप्ति का आराधक होता है । अल्प राग वाला अथवा वीतराग हो जाता हैं। उसकी आकृति सौम्य एवं इन्द्रियाँ संयत होती हैं। यह