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श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह
७५.
परिणाम शुक्ल लेश्या है ।
छ: लेश्याओं का स्वरूप समझाने के लिये शास्त्रकारों ने दो दृष्टान्त दिये हैं । वे नीचे लिखे अनुसार हैं
छः पुरुषों ने एक जामुन का वृक्ष देखा । वृक्ष पके हुए फलों से लदा था। शाखाएं नीचे की ओर झुक रही थीं। उसे देख कर उन्हें फल खाने की इच्छा हुई । सोचने लगे, किस प्रकार इसके फल खाये जायँ ? एक ने कहा “वृक्ष पर चढ़ने में तो गिरने का खतरा है इसलिये इसे जड़ से काटकर गिरा दें और मुख से बैठ कर फल खावें " यह सुन कर दूसरे ने कहा " वृक्ष को जड़ से काट कर गिराने से क्या लाभ ? केवल बड़ी बड़ी डालियाँ ही क्यों न काट ली जायँ " इस पर तीसरा बोला, "बड़ी बड़ी डालियाँ न काट कर छोटी छोटी डालियाँ ही क्यों न काट ली जायँ ? क्योंकि फल तो छोटी डालियों में ही लगे हुए हैं । " चौथे को यह बात पसन्द न आई, उसने कहा - "नहीं, केवल फलों के गुच्छे ही तोड़े जायँ । हमें तो फलों से ही प्रयोजन है । " पाँचवें ने कहा- “गुच्छे भी तोड़ने की जरूरत नहीं है, केवल पके हुए फल ही नीचे गिरा दिये जायँ । ” यह सुन कर छठे ने कहा“ जमीन पर काफी फल गिरे हुए हैं, उन्हें ही खालें । अपना मतलब तो इन्हीं से सिद्ध हो जायगा । "
दूसरा दृष्टान्त इस प्रकार है । छः क्रूर कर्मी डाकू किसी ग्राम डाका डालने के लिए रवाना हुए। रास्ते में वे विचार करने लगे। उनमें से एक ने कहा " जो मनुष्य या पशु दिखाई दें सभी मार दिये जायँ ।" यह सुन कर दूसरे ने कहा “पशुओं ने हमारा कुछ नहीं बिगाड़ा है। हमारा तो मनुष्यों के साथ विरोध है, इसलिये उन्हीं का वध करना चाहिये ।" तीसरे ने '