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श्री सेठिया जैन प्रन्थमाला
जीवाधिकरण: कर्म बन्ध के साधन जीव या जीवगत कषायादि
जीवाधिकरण हैं । जीवाधिकरणः-कर्म बन्ध में निमित्त जड़ पुद्गल अजीवाधिकरण हैं । जैसे शस्त्र आदि ।
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( तत्त्वार्थ सूत्र अध्याय ६ )
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५१ - वेदनीय कर्म के दो मेदः -
( १ ) साता वेदनीय ( २ ) असातावेदनीय । सातावेदनीयः - जिस कर्म के उदय से आत्मा को अनुकूल विषयों की प्राप्ति हो तथा शारीरिक और मानसिक सुख का अनुभव हो उसे सातावेदनीय कहते हैं । असातावेदनीयः - जिस कर्म के उदय से आत्मा को अनुकूल विषयों की प्राप्ति से और प्रतिकूल विषयों की प्राप्ति से दुःख का अनुभव होता है उसे असातावेदनीय कहते हैं ।
( पनवरणा पद २३ )
( कर्मग्रन्थ पहला भाग) बन्ध ( २ ) देश बन्ध ।
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५२ -बन्ध के दो भेदः - ( १ ) सर्व सर्वबन्ध – जो शरीर नये उत्पन्न होते हैं उनके आरम्भ काल में आत्मा को सर्व बन्ध होता है। अर्थात् नये शरीर का आत्मा के साथ बन्ध होने को सर्व बन्ध कहते हैं । दारिक, वैक्रिक और आहारक शरीर का उत्पत्ति के समय होता है ।
सर्व
देशबन्धः - उत्पत्ति के बाद में जब तक शरीर स्थिर रहते हैं तब तक होने वाला बन्ध देशबन्ध है । तैजस और कार्मण शरीर की नवीन उत्पत्ति नहीं होती । अतः उनमें सदा देशबन्ध