________________
श्री जैन सिद्धान बोल संग्रह ४६-प्रारम्भ:--हिंसादिक सावध कार्य प्रारम्भ है। परिग्रहः-मूळ ( ममता ) को परिग्रह कहते हैं । धर्म साधन के
लिए रक्खे हुए उपकरण को छोड़ कर सभी धन धान्य आदि ममता के कारण होने से परिग्रह हैं।
___ (ठाणांग २) यही कारण है कि धन धान्यादि बाह्य परिग्रह माने गये हैं। और मूर्छा ( ममत्व-गृद्धि भाव ) आभ्यन्तर परिग्रह माने गये हैं।
(ठाणांग २ उहे शा १ सूत्र ६४) इन आरम्भ परिग्रह को ज्ञपरिज्ञा से जान कर प्रत्याख्यान परिज्ञा से त्याग न करने से जीव केवली प्ररूपित धर्म सुनने एवं बोधि प्राप्त करने में, गृहस्थावाम छोड़ कर साधु होने में, ब्रह्मचर्य पालन करने में, विशुद्ध संयम तथा मंवर प्राप्त करने में, शुद्ध मति, श्रुति, अवधि, मनः पर्यव
और केवल ज्ञान प्राप्त करने में असमर्थ होता है । किन्तु प्रारम्भ परिग्रह को ज्ञ परिज्ञा से जान कर प्रत्याख्यान परिज्ञा से त्यागने वाला जीव उपर्युक्त ११ बोल प्राप्त
करने में समर्थ होता है। ५०-अधिकरण की व्याख्या और उसके भेदः
कर्म बन्ध के साधन उपकरण या शस्त्र को अधिकरण कहते हैं। अधिकरण के दो भेदः
(१) जीवाधिकरण (२) अजीवाधिकरण ।