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श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला दृष्टि-बिन्दुओं से जानता है अर्थात् वस्तु के सत्र अंशों को जानने वाले ज्ञान को प्रमाण ज्ञान कहते हैं ।
(प्रमाणनयतत्त्वालोकालङ्कार परिच्छेद १) नयः -प्रमाण के द्वारा जानी हुई अनन्त-धर्मात्मक वस्तु के
किमी एक अंश या गुण को मुख्य करके जानने वाले ज्ञान को नय कहते हैं । नयज्ञान में वस्तु के अन्य अंश या गुणों की ओर उपेक्षा या गौणता रहती है।
(प्रमाणनयनत्त्वालोकालङ्कार परिच्छेद ७) ३८-मुख्यः-पदार्थ के अनेक धर्मों में से जिम ममय जिम धर्म
की विवक्षा होती है। उस समय वही धर्म प्रधान माना जाता है। इसी तरह अनेक वस्तुओं में विवक्षित वस्तु प्रधान
होती है । प्रधान को ही मुख्य कहते हैं । गौणः-मुख्य धर्म के सिवाय सभी अविवक्षित धर्म गौण कहलाते
हैं। इसी तरह अनेक वस्तुओं में से अविवक्षित वस्तु भी गौण कहलाती है। जैसे:-आत्मा में ज्ञान, दर्शन, चारित्र आदि अनन्त धर्म हैं । उनमें से जिम समय ज्ञान की विवक्षा होती है । उम ममय ज्ञान मुख्य है और बाकी धर्म गाण हो जाते हैं।
अथवा "ममयं गोयम ! मा पमायए" अर्थातः हे गौतम ! समय मात्र भी प्रमाद न करो। यह उपदेश भगवान् महावीर स्वामी ने गौतम स्वामी को सम्बोधित करते हुए फरमाया है। यह उपदेश मुख्य रूप