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श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह
२३ लोकाकाशः--जहां धर्मास्तिकाय आदि छः द्रव्य हों वह लोका
काश है। अलोकाकाश:--जहां आकाश के सिवा और कोई द्रव्य न हो वह अलोकाकाश है।
(ठाणांग २ उद्देशा १ सूत्र ७४) ३५-कारणके दो भेदः
(१) उपादान कारण (२) निमित्त कारण । उपादान कारण:-(ममवायी) जो कारण स्वयं कार्य रूप में
परिणत होता है उसे उपादान कारण कहते हैं । जैसे मिट्टी, घड़े का उपादान कारण हैं। अथवा दूध, दही का उपादान
कारण है। निमित्त कारण:--जो कारण कार्य के होने में सहायक हो और
कार्य के हो जाने पर अलग हो जाय उसे निमित्त कारण कहते हैं। जैसे घड़े के निमित्त कारण चक्र (चाक), दण्ड आदि हैं।
(विशेषावश्यक भाष्य गाथा २०६९) ३६-दंड के दो भेद--(१) अर्थदण्ड (२) अनर्थ दण्ड । अर्थदण्ड:-अपने और दूसरे के लिए बस और स्थावर जीवों
की जो हिंसा होती है उसे अर्थदण्ड कहते हैं । अनर्थदण्डः-विना किसी प्रयोजन के जीव हिमा रूप कार्य करना अनर्थ दण्ड है।
(ठाणांग २ उद्देशा १ सूत्र ६६) ३७-प्रमाणः-अपना और दूसरे का निश्चय करनेवाले सच्चे
ज्ञान को प्रमाण कहते हैं । प्रमाण ज्ञान वस्तु को सब