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श्री जैन सिद्धान गोल संग्रह प्रत्यनः-इन्द्रिय और मन की महायता के विना माक्षान् आत्मा
से जो ज्ञान हो वह प्रत्यक्ष ज्ञान है । जैस अवविज्ञान मन:पर्यय ज्ञान और केवल ज्ञान।
(श्री नन्दीसूत्र) यह व्याख्या निश्चय दृष्टि से है। व्यवहारिक दृष्टि से तो
इन्द्रिय और मन से होने वाले ज्ञान को भी प्रत्यक्ष कहते हैं। परोक्षज्ञान-इन्द्रिय और मन की महायता से जो ज्ञान हो वह
परोक्ष ज्ञान है । जैसे मतिज्ञान और श्रुतज्ञान ।
अथवा
जो ज्ञान अस्पष्ट हो (विशद न हो)। उसे परोक्ष ज्ञान कहते हैं । जैसे स्मरण, प्रत्यभिज्ञान आदि ।
(ठाणांग २ उद्देशा १ सूत्र ७१) १३-अवधिज्ञान की व्याख्या और भेदः
इन्द्रिय और मन की महायता के विना द्रव्य, क्षेत्र, काल
और भाव को मर्यादा पूर्वक जो ज्ञान रूपी पदार्थों को जानता है । उस अवविज्ञान कहते हैं। अवधिज्ञान के दो भेदः-(१) भव प्रत्यय (२) क्षयोपशम प्रत्यय । भवप्रत्यय अवधिज्ञान:-जिस अवधिज्ञान के होने में भव हो
कारण हो उस भव प्रत्यय अववि ज्ञान कहते हैं। जैसेनारकी और देवताओं को जन्म से हो अवधिज्ञान
होता है। क्षयोपशम प्रत्यय अवधिज्ञान:-ज्ञान.' तप आदि कारणों से
मनुष्य और तिर्यश्चों को जो अवधिज्ञान होता है उसे