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श्री सेठिया जैन प्रन्थमाला आधिगमिक सम्यक्त्व:-गुरु आदि के उपदेश से अथवा अङ्ग
उपांग आदि के अध्ययन से जीवादि तत्त्वों पर रुचि-श्रद्धा होना आधिगमिक ( अभिगम ) मम्यक्त्व है।
(ठाणांग २ सूत्र ६०) __ (पन्नवणा पहला पद)
(तत्त्वार्थ सूत्र प्रथम अध्याय) पोद्गलिक सम्यक्त्व:-क्षायोपशमिक सम्यक्त्व को पौद्गलिक
सम्यक्त्व कहते हैं क्योंकि क्षायोपशमिक मम्यक्त्व में सम
कित मोहनीय के पुद्गलों का वेदन होता है। अपौद्गलिक सम्यक्त्व-क्षायिक और औपशमिक समकित को
अपौद्गलिक सम्यक्त्व कहते हैं। क्योंकि इसमें समकित मोहनीय का सर्वथा नाश अथवा उपशम हो जाता है वेदन नहीं होता है।
(प्रवचन सारोद्धार गाथा ६४२ टीका) ११-उपयोगः-मामान्य या विशेष रूप से वस्तु को जानना
उपयोग है। उपयोग के दो भेद हैं। (१) ज्ञान (२) दर्शन । ज्ञान:-जो उपयोग पदार्थों के विशेष धर्मों का जाति, गुण,
क्रिया आदि का ग्राहक हैं वह ज्ञान कहा जाता है। ज्ञान को
साकार उपयोग कहते हैं। दर्शनः --जो उपयोग पदार्थों के मामान्य धर्म का अर्थात् सत्ता
का ग्राहक है। उसे दर्शन कहते हैं। दर्शन को निराकार · उपयोग कहते हैं।
(पन्नवणा पद २८) १२-ज्ञान के दो भेदः-(१) प्रत्यक्ष (२) पगेन ।