________________ भी जैन सिद्धान्त बोल सग्रह 436 (3) पीड़ितः-गीले वस्त्र के निचोड़ने से निकलने वाली वायु पीड़ित वायु है। (4) शरीरानुगतः डकार आदि लेते हुए निकलने वाली वायु शरीरानुगत वायु है। (5) सम्मूर्छिमः -पंखे आदि से पैदा होने वाली वायु सम्मृर्षिम वायु है। ये पांचों प्रकार की अचित्त वायु पहले अचेतन होती हैं और बाद में सचेतन भी हो जाती है। (ठाणांग 5 उद्देशा 3 सूत्र 444) ४१४-पांच वर्ण:-- (1) काला। (2) नीला। (3) लाल / (4) पीला। (5) सफेद। ये ही पाँच मूल वर्ण हैं। इनके सिवाय लोक प्रसिद्ध अन्य वर्ण इन्हीं के संयोग से पैदा होते हैं। (ठाणांग 5 उद्देशा 1 सूत्र 360) ४१५-पाँच रस: (1) तीखा। (2) कडुवा। (3) कषैला। (4) खट्टा / (5) मीठा। इनके अतिरिक्त दूसरे रस इन्हीं के संयोग से पैदा होते हैं। इस लिये यहाँ पाँच मूल रस ही गिनाये गये हैं। (ठाणंग 5 उद्देशा 1 सूत्र 360)