________________ 438 श्री सेठिया जैन मन्थमाला स्थावर काय पांच हैं:(१) इन्द्र स्थावर काय (2) ब्रह्म स्थावर काय (3) शिल्प स्थावर काय (4) सम्मति स्थावर काय (5) प्राजापत्य स्थावर काय (1) इन्द्र स्थावर कायः-पृथ्वी काय का स्वामी इन्द्र है। इस लिए इसे इन्द्र स्थावर काय कहते हैं। (2) ब्रह्म स्थावर कायः-अपकाय का स्वामी ब्रह्म है। इस लिए इसे ब्रह्म स्थावर काय कहते हैं। (3) शिल्प स्थावर काय:-तेजस्काय का स्वामी शिल्प है। इस लिये यह शिल्प स्थावर काय कहलाती है। (4) सम्मति स्थावर कायः--वायु का स्वामी सम्मति है। इस लिये यह सम्मति स्थावर काय कहलाती है। (5) प्राजापत्य स्थावर काय:-वनस्पति काय का स्वामी प्रजापति है / इस लिये इसे प्राजापत्य स्थावर काय कहते हैं / (ठाणांग 5 उद्देशा 1 सूत्र 363) ४१३-पाँच प्रकार की अचित्त वायु: (1) आक्रान्त। (2) ध्मात / (3) पीड़ित। (4) शरीरानुगत / (5) सम्मूर्छिम / (1) आक्रान्तः-पैर आदि से जमीन वगैरह के दबने पर जो वायु उठती है वह आक्रान्त वायु है। (2) ध्माता-धमणी आदि के धमने से पैदा हुई वायु ध्मात वायु है।