________________ 434 श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला और सुख के साधन रूप हों उन्हें भी निधि ही समझना चाहिए। निधि पाँच हैं:(१) पुत्र निधि। (2) मित्र निधि / (3) शिल्प निधि। (4) धन निधि / (4) धान्य निधि। (1) पुत्र निधिः-पुत्र स्वभाव से ही माता पिता के आनन्द और सुख का कारण है / तथा द्रव्य का उपार्जन करने से निर्वाह का भी हेतु है। अतः वह निधि रूप है। (2) मित्र निधिः-मित्र, अर्थ और काम का साधक होने से आनन्द का हेतु है / इस लिये वह भी निधि रूप कहा गया है। (3) शिल्प निधिः-शिल्प का अर्थ है चित्रादि ज्ञान / यहाँ शिल्प का आशय सब विद्याओं से है / वे पुरुषार्थ चतुष्टय की साधक होने से आनन्द और सुख रूप हैं। इस लिये शिल्प-विद्या निधि कही गई है। (4) धन निधि और (5) धान्य निधि वास्तविक निधि रूप निधि के ये पांचों प्रकार द्रव्य निधि रूप हैं / और कुशल अनुष्ठान का सेवन भाव निधि है। (ठाणांग 5 उद्देशा 3 सूत्र 448) ४०८-पाँच धाय ( धात्री): बच्चों का पालन पोषण करने के लिये रखी जाने वाली स्त्री धाय या धात्री कहलाती है।