________________ 428 अभिवर्धित संवत्सरः-जिस संवत्सर में क्षण, लव (46 उच्छवास प्रमाण) दिवस और ऋतुएं सूर्य के नेज से तप्त होकर व्यतीत होती हैं। यहां पर सूर्य के ताप से पृथ्वी आदि के तपने पर भी क्षण, लव. दिवस आदि में ताप का उपचार किया गया है / तथा जिसमें वायु से उड़ी हुई धूलि से स्थल भर जाने हैं। इन लक्षणों से युक्त संवत्सर को अभिवधित संवत्सर कहते हैं। (5) शनैश्चर संवन्मर:-जितने काल में शनैश्चर एक नक्षत्र को भोगता है वह शनैश्चर मंवत्सर है / नक्षत्र 28 हैं। इस लिये शनैश्चर मंवत्सर भी नक्षत्रों के नाम से 28 प्रकार अथवाःअट्ठाईस नक्षत्रों के तीस वर्ष परिमाण भोग काल को नक्षत्र संवत्मर कहते हैं। (ठाणांग 5 उद्देशा 3 सूत्र 460) (प्रवचन सारोद्धार द्वार 142 गाथा 101) ४०१-पाँच अशुभ भावनाः (3) आभियोगी भावना। (4) आसुरी भावना। (5) मम्मोही भावना। (प्रवचन सारोद्धार द्वार 73) (उत्तराध्ययन अध्ययन 36) ४०२--कन्दर्प भावना के पाँच प्रकारः-- (1) कन्दर्प। (2) कौत्कुच्य /