________________ 422 श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला (4) अलङ्कारिका सभा:-जिस में देवता अलङ्कार पहनते हैं वह अलङ्कारिका सभा है। (5) व्यवसाय सभा-जिसमें पुस्तकें पढ़ कर तत्वों का निश्चय किया जाता है वह व्यवसाय सभा है। (ठाणांग 5 उद्देशा 3 सूत्र 472) ३१८-देवों की पाँच परिचारणा: वेद जनित बाधा होने पर उसे शान्त करना परिचारणा कहलाती है। परिचारणा के पाँच भेद हैं: (1) काय परिचारणा। (2) स्पर्श परिचारणा / (3) रूप परिचारणा / (4) शब्द परिचारणा / (5) मन परिचारणा / भवनपति, व्यन्तर, ज्योतिषी और सौधर्म, ईशान देवलोक के देवता काय परिचारणा वाले हैं अर्थात् शरीर द्वारा स्त्री पुरुषों की तरह मैथुन सेवन करते हैं और इससे वेद जनित बाधा को शान्त करते हैं। ___ तीसरे सनत्कुमार और चौथे माहेन्द्र देवलोक के देवता स्पर्श परिचारणा वाले हैं अर्थात् देवियों के अङ्गोपाङ्ग का स्पर्श करने से ही उनकी वेद जनित बाधा शान्त हो जाती हैं। पांचवें ब्रह्मलोक और छठे लान्तक देवलोक में देवता रूप परिचारणा वाले हैं। वे देवियों के सिर्फ रूप को देख कर ही तृप्त हो जाते हैं।