________________ श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह 421 ये विमान अनुत्तर अर्थात् सर्वोत्तम होते हैं तथा इन विमानों में रहने वाले देवों के शब्द यावत् स्पर्श सर्व श्रेष्ठ होते हैं / इस लिये ये अनुत्तर विमान कहलाते हैं / एक बेला (दो उपवास) तप से श्रेष्ठ साधु जितने कर्म क्षीण करता है उतने कर्म जिन मुनियों के बाकी रह जाते हैं वे अनुत्तर विमान में उत्पन्न होते हैं / सर्वार्थ सिद्ध विमानवासी देवों के जीव तो सात लव की स्थिति के कम रहने से वहां जाकर उत्पन्न होते हैं। (पन्नवया पद 1) (भगवती शतक 14 उद्देशा) ३६७-इन्द्र स्थान की पांच सभाएं: ___ चमर आदि इन्द्रों के रहने के स्थान, भवन, नगर या विमान इन्द्र स्थान कहलाने हैं। इन्द्र स्थान में पाँच सभाएं होती हैं(१) सुधर्मा समा। (2) उपपात सभा / (3) अभिषेक सभा / (4) अलङ्कारिका सभा। (5) व्यवसाय सभा। (1) सुधर्मा सभा:-जहाँ देवताओं की शय्या होती है / वह सुधर्मा सभा है। (2) उपपात सभाः जहाँ जाकर जीव देवता रूप से उत्पन्न होता है / वह उपपात सभा है। (3) अभिषेक सभा:-जहाँ इन्द्र का राज्याभिषेक होता है। वह अभिषेक सभा है।