________________ 418 श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला ३६२--पांच इन्द्रियों: आत्मा, सर्व वस्तुओं का ज्ञान करने तथा भोग करने रूप ऐश्वर्य से सम्पन्न होने से इन्द्र कहलाता है। प्रात्मा के चिह्न को इन्द्रिय कहते हैं। अथवा:इन्द्र अर्थात् आत्मा द्वारा दृष्ट, रचित, सेवित और दी हुई होने से श्रोत्र, चनु आदि इन्द्रियों कहलाती हैं / अथवा:त्वचा नेत्र आदि जिन साधनों से सर्दी गर्मी, काला पीला आदि विषयों का ज्ञान होता है तथा जो अङ्गोपाङ्ग और निर्माण नाम कर्म के उदय से प्राप्त होती है वह इन्द्रिय कहलाती है। इन्द्रिय के पाँच भेदः-- (1) श्रोत्रेन्द्रिय / (2) चक्षुरिन्द्रिय / (3) घाणेन्द्रिय। (4) रसनेन्द्रिय / ___(5) स्पर्शनेन्द्रिय / (1) श्रोत्रेन्द्रियः-जिसके द्वारा जीव, अजीव और मिश्र शब्द का ज्ञान होता है उसे श्रोत्रेन्द्रिय कहते हैं / (2) चक्षुरिन्द्रियः-जिसके द्वारा आत्मा पाँच वर्णों का ज्ञान करती है वह चक्षुरिन्द्रय कहलाती है। (3) घाणेन्द्रियः--जिसके द्वारा आत्मा सुगन्ध और दुर्गन्ध को जानती है वह घाणेन्द्रिय कहलाती है। (4) रसनेन्द्रियः-जिसके द्वारा पाँच प्रकार के रसों का ज्ञान होता है वह रसनेन्द्रिय कहलाती है।