________________ श्री जैन सिद्धान्त बोल संपह 416 (5) स्पर्शनेन्द्रियः-जिसके द्वारा आठ प्रकार के स्पर्शों का ज्ञान होता है / वह स्पर्शनेन्द्रिय कहलाती है। (पन्नवण पद 15) (ठाणांग 5 उद्देशा 3 सूत्र 443) (जैन सिद्धान्त प्रवेशिका) ३६३-पांच इन्द्रियों के संस्थान:-- इन्द्रियों की विशेष प्रकार की बनावट को संस्थान कहते हैं / इन्द्रियों का संस्थान दो प्रकार का है / बाह्य और आभ्यन्तर / इन्द्रियों का बाम संस्थान भिन्न भिन्न जीवों के भिन्न भिन्न होता है। सभी के एक सा नहीं होता / किन्तु आभ्यन्तर संस्थान सभी जीवों का एक सा होता है। इस लिये यहाँ इन्द्रियों का आभ्यन्तर संस्थान दिया जाता है। श्रोत्रेन्द्रिय का संस्थान कदम्ब के फूल जैसा है / चक्षुरिन्द्रिय का संस्थान मघर की दाल जैसा है। घाणेन्द्रिय का आकार अतिमुक्त पुष्प की चन्द्रिका जैसा है। रसनानेन्द्रिय का आकार खुरपे जैसा है। स्पर्शनेन्द्रिय का आकार अनेक प्रकार का है। (पन्नवणा पद 15) (ठाणांग 5 उद्देशा 3 सूत्र 443 टोका) ३६४--पाँच इन्द्रियों का विषय परिमाण: श्रोत्रेन्द्रिय जघन्य अंगुल के असंख्यातवें भाग से उत्कृष्ट बारह योजन से आये हुए, शब्दान्तर और वायु आदि से अप्रतिहत शक्ति वाले, शब्द पुद्गलों को विषय करती है।