________________ 416 श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला (2) वैक्रिय शरीर बन्धन नामकर्म:-जिस कर्म के उदय से पूर्व गृहीत एवं गृह्यमाण वैक्रिय पुद्गलों का परस्पर व तेजस कार्माण शरीर के पुद्गलों के साथ सम्बन्ध होता है / वह चैक्रिय शरीर बन्धन नामकर्म है। (3) आहारक शरीर बन्धन नामकर्म:-जिस कर्म के उदय से पूर्व गृहीत एवं गृह्यमाण आहारक पुद्गलों का परस्पर एवं तैजस कार्माण शरीर के पुद्गलों के साथ सम्बन्ध होता है। वह आहारक शरीर बन्धन नामकर्म है। (4) तैजस शरीर बन्धन नामकर्म:-जिस कर्म के उदय से पूर्व गृहीत एवं गृह्यमाण तेजस पुद्गलों का परस्पर एवं कार्माण शरीर-पुद्गलों के साथ सम्बन्ध होता है / वह तैजस शरीर बन्धन नामकर्म है। (5) कार्माण शरीर बन्धन नामकर्म:-जिस कर्म के उदय से पूर्व गृहीत एवं गृह्यमाण कर्म पुद्गलों का परस्पर सम्बन्ध होता है वह कार्माण शरीर बन्धन नामकर्म है। औदारिक, वैक्रिय और आहारक इन तीन शरीरों का उत्पत्ति के समय सर्व बन्ध और बाद में देश बन्ध होता है। तेजस और कार्याण शरीर की नवीन उत्पत्ति न होने से उनमें सदा देश बन्ध ही होता है। ___(कर्म ग्रन्थ भाग पहला और छठा) (प्रवचन सारोद्धार गाथा 1251 से 75) ३६१-संघात नाम कर्म के पाँच भेदः ____ पूर्वगृहीत औदारिक शरीर आदि पुद्गलों का गृह्यमाण औदारिक आदि पुद्गलों के साथ सम्बन्ध होना बन्ध