________________ श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह 415 (अधिक प्रदेश वाले) हैं एवं परिमाण में सूक्ष्मतर हैं। तैजस और कार्माण शरीर सभी संसारी जीवों के होते हैं / इन दोनों शरीरों के साथ ही जीव मरण देश को छोड़ कर उत्पत्ति स्थान को जाता है। (ठाणांग 5 उद्देशा 1 सूत्र 365) (पन्नवणा पद 21) __ (कर्मग्रन्थ पहला) ३६०-बन्धन नाम कर्म के पाँच भेदः जिस प्रकार लाख, गोंद आदि चिकने पदार्थों से दो चीज़े आपस में जोड़ दी जाती हैं उसी प्रकार जिस नाम कर्म से प्रथम ग्रहण किये हुए शरीर पुद्गलों के साथ वर्तमान में ग्रहण किये जाने वाले शरीर पुद्गल परस्पर बन्ध को प्राप्त होते हैं वह बन्धन नाम कर्म कहा जाता है। बन्धन नाम कर्म के पाँच भेदः (1) औदारिक शरीर बन्धन नाम कर्म / (2) वैक्रिय शरीर बन्धन नाम कर्म / (3) आहारक शरीर बन्धन नाम कर्म / (4) तैजस शरीर बन्धन नाम कर्म / (5) कार्माण शरीर बन्धन नाम कर्म। (1) औदारिक शरीर बन्धन नाम कर्म:-जिस कर्म के उदय से पूर्व गृहीत एवं गृह्यमाण (वर्तमान में ग्रहण किये जाने वाले) औदारिक पुद्गलों का परस्पर व तैजस कार्माण शरीर पुद्गलों के साथ सम्बन्ध होता है वह औदारिक शरीर बन्धन नामकर्म है।