________________ 414 श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला लब्धि प्रत्यय वैक्रिय शरीरः- तप आदि द्वारा प्राप्त लब्धि विशेष से प्राप्त होने वाला वैक्रिय शरीर लब्धि प्रत्यय वैक्रिय शरीर है। मनुष्य और तिर्यश्च में लब्धि प्रत्यय चक्रिय शरीर होता है। (3) आहारक शरीरः-प्राणी दया, तीर्थंकर भगवान् की ऋद्धि का दर्शन तथा संशय निवारण आदि प्रयोजनों से चौदह पूर्वधारी मुनिराज,अन्य क्षेत्र (महाविदेह क्षेत्र) में विराजमान तीर्थंकर भगवान् के समीप भेजने के लिये, लब्धि विशेष से अतिविशुद्ध स्फटिक के सदृश एक हाथ का जो पुतला निकालते हैं वह आहारक शरीर कहलाता है / उक्त प्रयोजनों के सिद्ध हो जाने पर वे मुनिराज उस शरीर को छोड़ देते हैं। (4) तैजस शरीर:-तेजः पुद्गलों से बना हुआ शरीर तैजस शरीर कहलाता है प्राणियों के शरीर में विद्यमान उष्णता से इस शरीर का अस्तित्व सिद्ध होता है / यह शरीर आहार का पाचन करता है। तपोविशेष से प्राप्त तैजस लब्धि का कारण भी यही शरीर है। (5) कार्माण शरीरः-कर्मों से बना हुआ शरीर कार्माण कहलाता है / अथवा जीव के प्रदेशों के साथ लगे हुए आठ प्रकार के कर्म पुद्गलों को कार्माण शरीर कहते हैं / यह शरीर ही सब शरीरों का बीज है। पाँचों शरीरों के इस क्रम का कारण यह है कि आगे आगे के शरीर पिछले की अपेक्षा प्रदेश बहुल