________________ 413 श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह शरीर की उतर वैक्रिय की अपेक्षा अनवस्थित अवगाहना लाख योजन की है / परन्तु भव धारणीय बैंक्रिय शरीर की अवगाहना तो पांच सौ वधुष से ज्यादा नहीं है। अथवाःअन्य शरीरों की अपेक्षा अल्प प्रदेश वाला तथा परिमाण में बड़ा होने से यह औदारिक शरीर कहलाता है। अथवा:___मांस रुधिर अस्थि आदि से बना हुआ शरीर औदारिक कहलाता है। औदारिक शरीर मनुष्य और तिर्यञ्च के होता है / (2) वैक्रिय शरीर:-जिस शरीर से विविध अथवा विशिष्ट प्रकार की क्रियाएं होती हैं वह वैक्रिय शरीर कहलाता है। जैसे एक रूप होकर अनेक रूप धारण करना, अनेक रूप होकर एक रूप धारण करना, छोटे शरीर से बड़ा शरीर बनाना और बड़े से छोटा बनाना, पृथ्वी और आकाश पर चलने योग्य शरीर धारण करना,दृश्य अदृश्य रूप बनाना आदि / वैक्रिय शरीर दो प्रकार का है: (1) औपपातिक वैक्रिय शरीर / (2) लब्धि प्रत्यय वैक्रिय शरीर / ___जन्म से ही जो वैक्रिय शरीर मिलता है वह औपपातिक वैक्रिय शरीर है। देवता और नारकी के नैरिये जन्म से ही वैक्रिय शरीरधारी होते हैं /