________________ 408 श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला (2) चायिक भाव-जो कर्म के सर्वथा क्षय होने पर प्रकट होता है वह क्षायिक भाव कहलाता है। सायिक भाव के नौ भेदः-- (1) केवल ज्ञान / (2) केवल दर्शन / (3) दान लब्धि। (4) लाभ लब्धि / (5) भोग लब्धि। (8) उपभोग लब्धि / (7) वीर्य लब्धि। (8) सम्यक्त्व / (8) चारित्र / चार सर्वघाती कर्मों के क्षय होने यर ये नव भाव प्रकट होते हैं / ये सादि अनन्त हैं। (3) क्षायोपशमिकः-उदय में आये हुए कर्म का क्षय और अनुदीर्ण अंश का विपाक की अपेक्षा उपशम होना क्षयोपशम कहलाता है / क्षयोपशम में प्रदेश की अपेक्षा कर्म का उदय रहता है / इसके अठारह भेद हैं चार ज्ञान, तीन अज्ञान, तीन दर्शन, दान, लाभ, भोग, उपभोग और वीर्य की पाँच लब्धियों, सम्यक्त्व और चारित्र / चार सर्वधाती कर्मों के क्षयोपशम से ये भाव प्रगट होते हैं। शेष कर्मों का क्षयोपशम नहीं होता। (4) औदयिक भावः-यथा योग्य समय पर उदय प्राप्त आठ कर्मों का अपने अपने स्वरूप से फल भोगना उदय है। उदय से होने वाला भाव औदयिक कहलाता है / औदयिक भाव के इक्कीस भेद हैं: चार गति, चार कषाय, तीन लिङ्ग, छः लेश्या, अज्ञान, मिथ्यात्व, असिद्धत्व, असंयम /