________________ श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह 407 धर्मास्तिकाय आदि अमूर्त हैं इस लिये अवधिज्ञानी उन्हें नहीं जानता / परन्तु परमाणु पुद्गल मूर्त (रूपी) है और उसे अवधिज्ञानी जानता है। इसलिये यहाँ छमस्थ से अवधि ज्ञान आदि के अतिशय रहित छमस्थ ही का आशय है। (ठाणांग 5 उद्देशा 3 सूत्र 450) ३८७-जीव के पाँच भावः विशिष्ट हेतुओं से अथवा स्वभाव से जीवों का भिन्न भिन्न रूप से होना भाव है। अथवा:उपशमादि पर्यायों से जो होते हैं वे भाव कहलाते हैं। भाव के पाँच भेदः (1) औपशमिक / (2) क्षायिक / (3) क्षायोपशमिक / (4) औदयिक / (5) पारिणामिक / (1) औपशामिकः-जो उपशम से होता है वह औपशमिक भाव कहलाता है। प्रदेश और विपाक दोनों प्रकार से कर्मों का उदय रुक जाना उपशम है / इस प्रकार का उपशम सर्वोपशम कहलाता है और वह सर्वोपशम मोहनीय कर्म का ही होता है, शेष कर्मों का नहीं। औपशमिक भाव के दो भेद हैं(१) सम्यक्त्व / (2) चारित्र / ये भाव दर्शन और चारित्र मोहनीय के उपशम से होने वाले हैं।