________________ 406 श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला / बाद में निसढ़ कुमार ने भगवान् अरिष्टनेमि के पास दीक्षा ली। नौ वर्ष तक दीक्षा पर्याय पाल कर वे संथारा करके काल धर्म को प्राप्त हुए और सर्वार्थसिद्ध विमान में देवता हुए। वरदत्त अणगार के पूछने पर भगवान् अरिष्टनेमि ने बताया कि ये सर्वार्थसिद्ध विमान से चव कर महाविदेह क्षेत्र में जन्म लेंगे। वहाँ दीक्षा लेकर बहुत वर्ष तक चारित्र पाल कर अन्त में एक मास की संलेखना करेंगे और मुक्ति को प्राप्त करेंगे। (निरयावलिका) ३८५-दग्धाक्षर पाँच: काव्य में अक्षरों के शुभाशुभपने पर ध्यान दिया जाता है / अशुभ अक्षरों में भी पाँच अक्षर बहुत दूषित समझे जाते हैं / जो दग्धाक्षर कहलाते हैं। पद्य के आदि में ये अक्षर न आने चाहिये / दग्धाक्षर ये हैं: झ, ह, र, भ, प। यदि छन्द का पहला शब्द देवता या मङ्गलवाची हो तो अशुभ अक्षरों का दोष नहीं रहता। अक्षर के दीर्घ कर देने से भी दग्धाक्षर का दोष जाता रहता है। (सरल पिङ्गल) ३८६-पांच बोल छबस्थ साक्षात् नहीं जानता: (1) धर्मास्तिकाय / (2) अधर्मास्तिकाय / (3) आकाशास्तिकाय। (4) शरीर रहित जीव / (5) परमाणु पुद्गल /